11.5.10

" भारत  पाकीस्तान  के  समबन्ध  "

बचपन  से  यही  सुनता  था  की  पाक  हमारा  दुश्मन  है ,
पुछु  कीस  से , कौन  बताए  दोनों  में  क्या  अनबन  है ...
अनबन  क्या  है , झगडा  क्या  है  पुछु  में  सबसे  जाकर ,
सब  बोले  नादान  है  तू  समझेगा  न  तू  खुलकर ...
में  बोलू  गधे  ही  तुम  सब  कुछ  भी  पता  न  है  तुमको ,
पता  नहीं  है  कुछ  भी  फीर  क्यों  भड़काए  हम  सबको ...
थक  हारकर  घर  में  पहोचा  पुचा  माँ  से  जाकर ,
क्यों  लड़ते  है  यह  दोनों  तुम्ही  बतादो  माँ  खुलकर ...
माँ  बोली  कुछ  यु  हसकर  बेटा  तू  क्यों  डरता  है ,
दोस्ती  करने  को  हम  तो  क्या , पाकीस्तान  भी  मरता  है ...
राजनीती  के  इस  खेल  ने  इन  दोनों  को  है  यु  तोडा ,
जुडे  हुए  थे  दील  हम  सबके , इसने  है  रिश्तो  को  तोडा ...
क्या  मतलब  था  माँ  का  मैं  तो  कुछ  भी  समझ  न  पाया ,
सोच  सोचकर  रात  बीत  गयी , में  तो  सो  न  पाया ...
अब  बड़ा  हुआ  तो  सोचता  हु  क्यों  न  नया  जहां  बनाये ,
बीती  बीसरी  भूलकर  क्यों  न  अमन  ही  अमन  फैलाये ...
जो  बड़े  न  कर  सके  क्यों  न  हम  ही  वोह  कर  जाए ,
आगे  बढ़कर  क्यों  न  हम  दोस्ती  का  हाथ  बढ़ाये ...
सबको  बस  में  यही  कहूँगा  प्यार  के  दीये  जलाओ ,
इन  दीया  के  सब  अंधियारों  को  रोशन  कर  जाओ ...
लीखो  ऐसा  पैगाम  ख़ुशी  का  दुनीया  खुश  हो  जाये ,
प्यार  की  दुनीया  में  अपना  नाम  अमर  हो  जाये ...
जय  Hind...
हैल  इंडिया , हैल  पाकीस्तान ...
-वीश्वास

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दे के दील हम जो ही गए मजबूर ,

" दे  के  दील  हम  जो  ही  गए  मजबूर "
 
दे  के  दील  हम  जो  ही  गए  मजबूर ,
इस  में  क्या  इखतीयार  है  अपना  
बे -खुदी  ले  गयी  कहाँ  हम  को , 
दीर  से  इंतज़ार  है  अपना ,
रोते  फीरते  हैं  सारी - सारी  रात , 
अब  यही  रोज़गार  है  अपना , 
दे  के  दील  हम  जो  हो  गए  मजबूर , 
इस  में  क्या  इखतीयार   है  अपना,  
कुछ  नहीं  हम  मीसाल - ऐ - अनका    लेक , 
शहर - शहर  इश्तेहार  है  अपना , 
जीस  को   तुम  आसमान  कहते  हो , 
सो  दीलों  का  गुबार  है  अपना ,

महबूब बदल जाते हैं हर सेमिस्टर में

महबूब  बदल  जाते  हैं  हर  सेमिस्टर  में 

प्यार  का  मतलब  नहीं  कोई  सेहर  में 
 
महबूब  बदल  जाते  हैं  हर  सेमिस्टर  में 
 
क्यों  दीये  जलाये  हम  गली  के   बादस्तूर 
आग  लगी  है  जब  अपने  ही  घर  में 
 
क्यों  प्यार  उसी  से  हमें  बेपनाह 
 
मेरी  कीमत  नहीं  कोई  जिसकी  नज़र  में 
 
खुदगर्ज़  ही  गया  इंसान  इस  हवा  में 
 
बह  गए  सब  इस  लहर  में 
 
माँ  तू  क्यों  आंसू  बहती  है  खुले  में 
 
वो  तासीर  नहीं  अब  दूध  के असर  में 
तेरी  आँख  में  नमी  क्यों  है  दोस्त 
 
क्या  फिर  कोई  हादसा  हुआ  सफ़र  में