16.4.10

दे के दील हम

दे  के  दील  हम

दे  के  दील  हम  जो  हो  गए  मजबूर ,
इस  में  क्या  इखतीयार  है  अपना
बे -खुदी  ले  गयी  कहाँ  हम  को ,
देर  से  इंतज़ार  है  अपना ,
रोते  फीरते  हैं  सारी - सारी  रात ,
अब  यही  रोज़गार  है  अपना ,
दे  के  दील  हम  जो  ही  गए  मजबूर ,
इस  में  क्या  इखतीयार  है  अपना 
कुछ  नहीं  हम  मीसाल - ऐ -अनका  लेक ,
शहर - शहर  इश्तेहार  है  अपना ,
जीस  को  तुम  आसमान  कहते  हो ,
सो  दीलों  का  गुबार  है  अपना ,
अंजान कवी 

दोस्त तेर शहर में ,

 दोस्त  तेर शहर में  , 

मील गया  जीस  नु  सहारा  दोस्त  तेर शहर में  , 
तुर्र  किवें  जांदा  वेचारा  दोस्त  तेरे  शहर  में  , 
अपने  दीलबर  दा  घर  बर्बाद  होया  वेख  के , 
तुर  गया  रो  रो  नाकारा  दोस्त  तेरे  शहर  मेंं , 
जिन्दगी   थोड़ी  सी   लेकीन  लुत्फ  चंगा  दे  गयी
ली  लीया  राज्ज   के  नज़ारा  दोस्त  तेरे  शहर में , 
मस्तीय  के  बीत  जावेगी  मेरी  ही  जिंदगी  , 
मील  गया  ऐसा  हुलारा  दोस्त  तेरे  शहर  में , 
सह्म्भ  के  जीस  नु  मैं  रखदा  सन  ओह  दिल  वी  लुट  लीया , 
तुर  गया  कर  के  किनारा  दोस्त  तेरे  शहर  में , 
सद्द  गया  जींदा  ही  तेरे  इश्क  दी  अग्नी  मैं , 
उड्ड  गया  बन्न  के  शरारा  दोस्त  तेरे  शहर  में , 
मौत  लेनी  वी  नहीं  सुखी  सिफारिश  तेरे   बीना , 
ज़हर  न  मिलिया  उधर  दोस्त  तेरे  शहर  में ,
जरा  संभाल  के  रखियो ,है  शीशे  वांग  दील  मेरा ,  
उडों  की  कारन  एह  आशिक  जड़ों  महबूब  हर  वारी
नज़र  दे  सहमने  आवे  मगर  पर्दा  गीरा  बैठे ,  
जरा  संभाल  के  रखियो ,है  शीशे  वांग  दील  मेरा 
एह  दील  के  टूट  जाना ,जे  तुस्सीं  हाथों  गीरा  बैठे ,  
मोहब्बत  वालीयां  ते  एह  ज़माना  रहम  नहीं  करदा , 
ज़माने  तों  हजारन  ज़ख़्म ,दील  वाले  करा  बैठे ,  
सुरीली  तान  इस  में ं ,कीस  तरन  होवे  भला  पैदा , 
तुस्सीं  एह  साज़  ही  अपना  ही  ली  के  बेसुरा  बैठे ,  
कड़े  हम दर्द  तुन  दिल  वालियां  दी  ही  नहीं  सकदी , 
खुदा  जाने ,अस्सीं  इतबार  किद्दां ,कर  तेरा  बैठे ,

अंजान कवी 

नींद आये भी तो

नींद आये भी तो

नींद  आये  भी   तो   अब  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं ,  
तू  बता  ऐ  दील  - ऐ - बेताब , कहाँ  आते  हैं ,
हमको  खुश  रहने  के  आदाब  कहाँ  आते  हैं , 
मैं  तो  यक्मुष्ट   उससे  सौंप  दूं  सब -कुछ  लेकीन ,
एक  मुठी  में  मेरे  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं , 
मुद्दतों  बाद  तुझे  देख  के  दील  भर आया ,
वरना  सहराओं  में  सेलाब  कहाँ  आते  हैं , 
मेरी  बेदार  निगाहों  में  अगर  भूले  से ,
नींद  आये  भी  तो  अब  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं , 
शिद्दत -ऐ -दर्द  है  या  कसरत -ऐ -मई - नोशी  है ,
होश  में  अब  तेरे  बेताब  कहाँ  आते  हैं , 
हम  कीसी  तरह  तेरे  दर  पे  ठीकाना  कर  लें ,
हम  फकीरों  को  ये  आदाब  कहाँ  आते  हैं , 
सर - बसर  जीन  में  फ़क़त  तेरी  झलक  मीलती  थी ,
अब  मुयस्सर  हमें  वोह  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं ,
सद्द  गया  जींदा  ही  तेरे  इश्क  दी  अग्नी   मैं , 

 

अन जान कवी