16.4.10

दे के दील हम

दे  के  दील  हम

दे  के  दील  हम  जो  हो  गए  मजबूर ,
इस  में  क्या  इखतीयार  है  अपना
बे -खुदी  ले  गयी  कहाँ  हम  को ,
देर  से  इंतज़ार  है  अपना ,
रोते  फीरते  हैं  सारी - सारी  रात ,
अब  यही  रोज़गार  है  अपना ,
दे  के  दील  हम  जो  ही  गए  मजबूर ,
इस  में  क्या  इखतीयार  है  अपना 
कुछ  नहीं  हम  मीसाल - ऐ -अनका  लेक ,
शहर - शहर  इश्तेहार  है  अपना ,
जीस  को  तुम  आसमान  कहते  हो ,
सो  दीलों  का  गुबार  है  अपना ,
अंजान कवी 

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