16.4.10

नींद आये भी तो

नींद आये भी तो

नींद  आये  भी   तो   अब  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं ,  
तू  बता  ऐ  दील  - ऐ - बेताब , कहाँ  आते  हैं ,
हमको  खुश  रहने  के  आदाब  कहाँ  आते  हैं , 
मैं  तो  यक्मुष्ट   उससे  सौंप  दूं  सब -कुछ  लेकीन ,
एक  मुठी  में  मेरे  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं , 
मुद्दतों  बाद  तुझे  देख  के  दील  भर आया ,
वरना  सहराओं  में  सेलाब  कहाँ  आते  हैं , 
मेरी  बेदार  निगाहों  में  अगर  भूले  से ,
नींद  आये  भी  तो  अब  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं , 
शिद्दत -ऐ -दर्द  है  या  कसरत -ऐ -मई - नोशी  है ,
होश  में  अब  तेरे  बेताब  कहाँ  आते  हैं , 
हम  कीसी  तरह  तेरे  दर  पे  ठीकाना  कर  लें ,
हम  फकीरों  को  ये  आदाब  कहाँ  आते  हैं , 
सर - बसर  जीन  में  फ़क़त  तेरी  झलक  मीलती  थी ,
अब  मुयस्सर  हमें  वोह  ख्वाब  कहाँ  आते  हैं ,
सद्द  गया  जींदा  ही  तेरे  इश्क  दी  अग्नी   मैं , 

 

अन जान कवी 

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