11.5.10

महबूब बदल जाते हैं हर सेमिस्टर में

महबूब  बदल  जाते  हैं  हर  सेमिस्टर  में 

प्यार  का  मतलब  नहीं  कोई  सेहर  में 
 
महबूब  बदल  जाते  हैं  हर  सेमिस्टर  में 
 
क्यों  दीये  जलाये  हम  गली  के   बादस्तूर 
आग  लगी  है  जब  अपने  ही  घर  में 
 
क्यों  प्यार  उसी  से  हमें  बेपनाह 
 
मेरी  कीमत  नहीं  कोई  जिसकी  नज़र  में 
 
खुदगर्ज़  ही  गया  इंसान  इस  हवा  में 
 
बह  गए  सब  इस  लहर  में 
 
माँ  तू  क्यों  आंसू  बहती  है  खुले  में 
 
वो  तासीर  नहीं  अब  दूध  के असर  में 
तेरी  आँख  में  नमी  क्यों  है  दोस्त 
 
क्या  फिर  कोई  हादसा  हुआ  सफ़र  में 

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