18.4.10

 
 
वोह  आज  काटों  के  दरमियान  न  जिए ,
इसलीये  हम  प्यार  कर  बैठे ,
 वोह  अपने  अखीयों  से  अन्स्सों  न  बहाए ,
इसलीये  हम  मुस्कराहट  के  नकाब  बन  बैठे ,
हमारी  खुदगर्जी  थी  की  उनकी  हंसी  बने ,
फीर  भी  आज  हम  उन अँजान  आँखों  बेजान  बन  बैठे  ..
मेरे  तकदीर  का  ठूटा  आइना  ही  ठुम ,
जिसमें  तुमने  हमारी  प्यार  का  पर्ची  चीन  लीया ,
पर  वक़्त  हमें  चीन  लीया ,
और  आइना  भी  सवर्ण  छोड़  दीया ,
आज  थक  शिकवा  नहीं  थी  खुदा  से ,
लगा  ki जिन्दगी में  सभ  मुरधे  पूरी  हुई ,
जबह  जनाज़ा  उठा  और  उसने  पलकों  से  अनसुन  बहाए ,
लगा  की मौत  भी  अधूरी  हुई  ..
आज  बदनाम  करना  चाहता  हूँ  तुझे ,
 प्यार  का  एख  दाग  तेरे  दामन  में ,
थाकी  तुझे  कोई  अगर  पूछे ,
ताब  कहना  एख  शायर  की  पहचान  हूँ  में 


No comments:

Post a Comment