18.4.10

चलो फीर आज कुछ तुम्हारे नाम लीखते हैं

चलो  फीर आज कुछ तुम्हारे नाम लीखते हैं 
 
वो  वादों   के हसीं  शाह  परे 
वो  फुरक़त  के  घुम्गीन  इस्तरी 
वो  तेरे  हीजेर मैं  बीती   रातें 
वो  तेर ऐ  इन्तजार  क  लमही 
कहूं  क्या  मैं  ऐ  जान  ऐ  जनान 
कह  अब  भी  याद  आतीं  हैं  वो  रातें 
लीखे तो  क्या  लीखे  तुम  ही  बताओ 
कलम  मैं  ताक़त  ऐ  गुफ्तार  है  कब 
न  सुन  सकती  ही  तुम  फिर्कत  क  कीसी
तो  जनान  कीया  लीखे हम ?
कई  यादें  कई  बातें 
जो  हम  को  याद  आतीं  हैं 
न  हम  महफूज़  करती  हैं 
कीसी  भी  संग  ऐ  मर - मर  पर
तो  फीर  कीया  लीखें जनान 
बताओ  क्या लीखें हम  फीर ??
अंजान कवी 

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