19.12.10

आज की शायरीया

जगर पे चौत लगती है खलीश दील में उभ्राती है
सनम जुल्मो सीतम करके अगर जो मुस्कुराती है


आमीन जल गया अपना ही आशीयाना
तासीर उलटी हाय अपने जलाल की


बन सके तो बाग़ बना ना लेकिन आग मत जलाना
जल सके तो अमर दीप जलाना लेकिन दील मत जलाना


गमे दुनिया से अगर पी भी फुर्सत उठाने की
फुल का देखना तरकीब तेरे याद आने की 

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