" भारत पाकीस्तान के समबन्ध "
बचपन से यही सुनता था की पाक हमारा दुश्मन है ,
पुछु कीस से , कौन बताए दोनों में क्या अनबन है ...
अनबन क्या है , झगडा क्या है पुछु में सबसे जाकर ,
सब बोले नादान है तू समझेगा न तू खुलकर ...
में बोलू गधे ही तुम सब कुछ भी पता न है तुमको ,
पता नहीं है कुछ भी फीर क्यों भड़काए हम सबको ...
थक हारकर घर में पहोचा पुचा माँ से जाकर ,
क्यों लड़ते है यह दोनों तुम्ही बतादो माँ खुलकर ...
माँ बोली कुछ यु हसकर बेटा तू क्यों डरता है ,
दोस्ती करने को हम तो क्या , पाकीस्तान भी मरता है ...
राजनीती के इस खेल ने इन दोनों को है यु तोडा ,
जुडे हुए थे दील हम सबके , इसने है रिश्तो को तोडा ...
क्या मतलब था माँ का मैं तो कुछ भी समझ न पाया ,
सोच सोचकर रात बीत गयी , में तो सो न पाया ...
अब बड़ा हुआ तो सोचता हु क्यों न नया जहां बनाये ,
बीती बीसरी भूलकर क्यों न अमन ही अमन फैलाये ...
जो बड़े न कर सके क्यों न हम ही वोह कर जाए ,
आगे बढ़कर क्यों न हम दोस्ती का हाथ बढ़ाये ...
सबको बस में यही कहूँगा प्यार के दीये जलाओ ,
इन दीया के सब अंधियारों को रोशन कर जाओ ...
लीखो ऐसा पैगाम ख़ुशी का दुनीया खुश हो जाये ,
प्यार की दुनीया में अपना नाम अमर हो जाये ...
जय Hind...
हैल इंडिया , हैल पाकीस्तान ...
-वीश्वास
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