" दे के दील हम जो ही गए मजबूर "
दे के दील हम जो ही गए मजबूर ,
इस में क्या इखतीयार है अपना
बे -खुदी ले गयी कहाँ हम को ,
दीर से इंतज़ार है अपना ,
रोते फीरते हैं सारी - सारी रात ,
अब यही रोज़गार है अपना ,
दे के दील हम जो हो गए मजबूर ,
इस में क्या इखतीयार है अपना,
कुछ नहीं हम मीसाल - ऐ - अनका लेक ,
शहर - शहर इश्तेहार है अपना ,
जीस को तुम आसमान कहते हो ,
सो दीलों का गुबार है अपना ,
बे -खुदी ले गयी कहाँ हम को ,
दीर से इंतज़ार है अपना ,
रोते फीरते हैं सारी - सारी रात ,
अब यही रोज़गार है अपना ,
दे के दील हम जो हो गए मजबूर ,
इस में क्या इखतीयार है अपना,
कुछ नहीं हम मीसाल - ऐ - अनका लेक ,
शहर - शहर इश्तेहार है अपना ,
जीस को तुम आसमान कहते हो ,
सो दीलों का गुबार है अपना ,
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