7.11.24

कहीं चांद

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई 

मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई 


मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में 

मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई 


भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले 

न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई 


तिरे हाथ से मेरे होंट तक वही इंतिज़ार की प्यास है 

मिरे नाम की जो शराब थी कहीं रास्ते में छलक गई 


तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं 

तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई 


   बशीर बद्र

जरा सा ग़म

एक ज़रा सा ग़म-ए-दौराँ का भी हक़ है जिस पर,

मैने वो साँस भी तेरे लिये रख़ छोड़ी है,

तुज़पे हो जाउंगा क़ुरबान तुज़े चाहुंगा,

मैं तो मर कर भी मेरी जान तुज़े चाहुंगा…


अपने जज़बात में नग़मात रचाने के लिये,

मैंने धड़कन की तरह दिलमें बसाया है तुज़े !

मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करुं !

मैंने किस्मत की लक़ीरों से चुराया है तुज़े,

प्यार का बन के निग़हबान तुज़े चाहुंगा…

मैं तो मर कर भी मेरी जान तुज़े चाहुंगा…


तेरी हर चाप से जलते है ख़यालों में चराग़,

जब भी तु आए, जगाता हुआ जादु आए !

तुज़को छु लुं तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुज़को,

देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुश्बु़ आए !

तु बहारोँ का है उन्वाँ, तुज़े चाहुंगा,

मैं तो मर कर भी मेरी जान तुज़े चाहुंगा…



- अहमद फराज.

6.11.24

આજની શાયરી

બે જણએ કમેકને ગમે તે લાગણી

અને

બે જણનેએ કમેક વગર ન ગમે

તે પ્રેમ

આજની શાયરી

ક્યારે હસવું ક્યારે રડવું એ બધુંયે ફિક્સ છે,

જિંદગી તો કોઈ ભેજાએ લખી કોમિક્સ છે.

બહુ વધુ ચાહતનો ડેટા રાખવામાં રિસ્ક છે,

આપણામાં માત્ર એક જ હાર્ટ છે ક્યાં ડિસ્ક છે

કોઈ ગમતું જણ કહે સામેથી ચાહુ છું તને,

જિંદગીની મેચ અંદર આ તમારી સિક્સ છે!

आजकी शायरी

करलो साजिश हमें भी तबाह करने की...

हमे भी जिद्द है अब किसीको अपना बनाने की...

आज की शायरी

किसी और कि बाहो मे रहकर

वोह हमसे वफा की बात करते है

ये कैसी चाहत है यारो,

वोह बेवफा है ये जानकर भी,

हम उन्ही से मोहब्बत करते है

आज की शायरी

 जी भरके रोते है तो करार मिलता है,

इस जहां मे कहां सबको प्यार मिलता है,

जिंदगी गुजर जाती है इम्तिहानो के दौर से..

एक जख्म भरता है तो दूसरा तैयार मिलता है.

कहीं चांद

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई  मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई  मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की ...