नींद आये भी तो
नींद आये भी तो अब ख्वाब कहाँ आते हैं ,
तू बता ऐ दील - ऐ - बेताब , कहाँ आते हैं ,
हमको खुश रहने के आदाब कहाँ आते हैं ,
मैं तो यक्मुष्ट उससे सौंप दूं सब -कुछ लेकीन ,
एक मुठी में मेरे ख्वाब कहाँ आते हैं ,
मुद्दतों बाद तुझे देख के दील भर आया ,
वरना सहराओं में सेलाब कहाँ आते हैं ,
मेरी बेदार निगाहों में अगर भूले से ,
नींद आये भी तो अब ख्वाब कहाँ आते हैं ,
शिद्दत -ऐ -दर्द है या कसरत -ऐ -मई - नोशी है ,
होश में अब तेरे बेताब कहाँ आते हैं ,
हम कीसी तरह तेरे दर पे ठीकाना कर लें ,
हम फकीरों को ये आदाब कहाँ आते हैं ,
सर - बसर जीन में फ़क़त तेरी झलक मीलती थी ,
अब मुयस्सर हमें वोह ख्वाब कहाँ आते हैं ,
सद्द गया जींदा ही तेरे इश्क दी अग्नी छ मैं ,
नींद आये भी तो अब ख्वाब कहाँ आते हैं ,
तू बता ऐ दील - ऐ - बेताब , कहाँ आते हैं ,
हमको खुश रहने के आदाब कहाँ आते हैं ,
मैं तो यक्मुष्ट उससे सौंप दूं सब -कुछ लेकीन ,
एक मुठी में मेरे ख्वाब कहाँ आते हैं ,
मुद्दतों बाद तुझे देख के दील भर आया ,
वरना सहराओं में सेलाब कहाँ आते हैं ,
मेरी बेदार निगाहों में अगर भूले से ,
नींद आये भी तो अब ख्वाब कहाँ आते हैं ,
शिद्दत -ऐ -दर्द है या कसरत -ऐ -मई - नोशी है ,
होश में अब तेरे बेताब कहाँ आते हैं ,
हम कीसी तरह तेरे दर पे ठीकाना कर लें ,
हम फकीरों को ये आदाब कहाँ आते हैं ,
सर - बसर जीन में फ़क़त तेरी झलक मीलती थी ,
अब मुयस्सर हमें वोह ख्वाब कहाँ आते हैं ,
सद्द गया जींदा ही तेरे इश्क दी अग्नी छ मैं ,
अन जान कवी
No comments:
Post a Comment