दे के दील हम
दे के दील हम जो हो गए मजबूर ,
इस में क्या इखतीयार है अपना
बे -खुदी ले गयी कहाँ हम को ,
देर से इंतज़ार है अपना ,
रोते फीरते हैं सारी - सारी रात ,
अब यही रोज़गार है अपना ,
दे के दील हम जो ही गए मजबूर ,
इस में क्या इखतीयार है अपना
कुछ नहीं हम मीसाल - ऐ -अनका लेक ,
शहर - शहर इश्तेहार है अपना ,
जीस को तुम आसमान कहते हो ,
सो दीलों का गुबार है अपना ,
अंजान कवी
इस में क्या इखतीयार है अपना
बे -खुदी ले गयी कहाँ हम को ,
देर से इंतज़ार है अपना ,
रोते फीरते हैं सारी - सारी रात ,
अब यही रोज़गार है अपना ,
दे के दील हम जो ही गए मजबूर ,
इस में क्या इखतीयार है अपना
कुछ नहीं हम मीसाल - ऐ -अनका लेक ,
शहर - शहर इश्तेहार है अपना ,
जीस को तुम आसमान कहते हो ,
सो दीलों का गुबार है अपना ,
अंजान कवी
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