चलो फीर आज कुछ तुम्हारे नाम लीखते हैं
वो वादों के हसीं शाह परे
वो फुरक़त के घुम्गीन इस्तरी
वो तेरे हीजेर मैं बीती रातें
वो तेर ऐ इन्तजार क लमही
कहूं क्या मैं ऐ जान ऐ जनान
कह अब भी याद आतीं हैं वो रातें
लीखे तो क्या लीखे तुम ही बताओ
कलम मैं ताक़त ऐ गुफ्तार है कब
न सुन सकती ही तुम फिर्कत क कीसी
तो जनान कीया लीखे हम ?
कई यादें कई बातें
जो हम को याद आतीं हैं
न हम महफूज़ करती हैं
कीसी भी संग ऐ मर - मर पर
तो फीर कीया लीखें जनान
बताओ क्या लीखें हम फीर ??
अंजान कवी
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