जी रहा हु
उगते और आठ्माते सूरज के साथ जी रहा हु
दील की धड़कन में त्रि याद के सहारे जी रहा हुુ
तेरी खामोश आँखों में उभरते आंसू ओ की कसम
पल हर पल तेरी यादों के सहारे जी रहा हु
वेदना j यदा सह सके ऐसा मेरा दील नहीं रहा
बस अभी तो मौत ही मीले इसी लिए जी रहा हु
तुजे देखने को पल भर जीवन में और हो कर
पल - दो पल की मुलाकात के लीये
जैसे मौन ही बनकर जी रहा हु
मेरे जीवन पथ पर तो कांटे ही कांटे है
बस एक तेरी राह में फुल बनकर बीखरने के लीये जी रहा हु
No comments:
Post a Comment